सक्तेश गढ़ चुनार तहसील में ही चुनार से लगभग 10 मील की दूरी पर दक्षिण में सक्तेश गढ़ का छोटा सा दुर्ग हैं. पहाड़ियों और जंगलों में ढके इस इलाके में कोलों और भरो का निवास था. ये कोल और भर ही इस इलाके के मालिक थे और कोई उनसे कर नहीं ले पता था, मध्य काल में जब अकबर के काल में भूमि व्यवस्था हुयी तो इनके ऊपर कब्ज़ा करने की पहल हुयी.
परिणाम स्वरूप पटेल और गहरवाल ज़मींदार बाहर से आये और जगह जगह अपने छोटे छोटे गढ़ बनाकर उन लोगों ने आदिवासियों को नियंत्रित करने की कोशिश की चुनार क्षेत्र के कोलना,कोलउन, भरमार, भरहटा. भरपुरा आदि गाँव इन जातियों के निवास के आज भी साक्षी हैं. इन्हीं आदिवासियों के नियंत्रण और उनसे कर वसूलने के लिए मुग़ल सम्राट अकबर के काल में कंतित स्टेट के राजा ने सम्राट की आज्ञा से यहाँ जारागो के किनारे एक गढ़ी बनवाई जो उस समय के राजा शक्ति सिंह के नाम पर सक्तेश गढ़ कहलाता है.
यह गढ़ जरगो नदी के किनारे स्थित हैं. जिसके चारो कोनों पर मीनारे हैं और काफी विस्तृत परकोटे से घिरी हुयी इमारत हैं. इसका एक कमरा शीशमहल कहा जाता हैं. क्युकी इसकी सजावट में शीशे का प्रयोग किया गया था, इस कारण यह काफी समृद्ध और वैभवशाली अतिथि गृह लगता था.
किले के पिछले आँगन से नदी तक जाने के लिए एक भूमिगत मार्ग है जो शायद महिलाओं के नदी स्नान के लिए बनवाया गया था. किले के चार ओर खाई के भी चिन्ह मिलते हैं. किसी समय यह दुर्ग घने जंगलों के बीच था. जहा शिकार की सुविधा तो थी ही और एक सुरक्षित स्थान भी था. जहा रहकर शासन के प्रतनिधि साम्राज्य की सत्ता का एहसास लोगो को करते थे और उनसे कर वसूलते थे.
घने जंगलों के बीच स्थित रहने पर भी इनकी संस्कृति वन्य संस्कृति ण होकर मुगलकालीन सम्राटों की संस्कृति से प्रभावित थी. इस लिए यहाँ की संस्कृति निश्चित रूप से वन्य संस्कृति के बीच राज्य संस्कृति होकर एक द्वीप की तरह हो गयी थी . इस समय दुर्ग में स्वामी अड़गडानन्द स्वामी का आश्रम है
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